Ramdhari Gupta Khand 2 PDF Download Shorthand Book

Ramdhari Gupta Khand 2 ऐसी shorthand dictation की पुस्तक है, जिसका प्रैक्टिस छात्र Ramdhari Khand 1 पूरा को करने के बाद ही करते है। इसके मैटर थोड़े कठिन होते है, पर परिक्षा मे आने की पूरी संभावना होती है।

आप सभी को अपनी गति और Accuracy अच्छी करनी है तो आप इस किताब को एक बार पूरा जरूर कर लें और इसके कुल 150 dictation matter को पूरा लिखें। जिससे आपकी गति और क्षमता काफी ज्यादा बढ़ेगी।

Ramdhari Gupta Khand 2 PDF Download

Ramdhari Gupta Khand 2 lesson 1

रामधारी गुप्ता जी की किताब की प्रतिलिपी मैने नीचे दी है, लिंक पर क्लिक करके इसके download कर लें। इसके बाद आप सभी को इसकी प्रैक्टिस करनी है। प्रैक्टिस करने पर ही जो कठिन शब्द आपको मिले उनको अलग लिख कर एक कॉपी मे रख लें तथा फिर उसके अलग से लिख लिख कर प्रैक्टिस करें।

Ramdhari Khand 2 PDF Book

आप सभी की कोशिश यही रहनी चाहिए की हर dictation matter को 5 से 7 बार जरूर लिखें। बाकी अगर यह कठिन लगे तो सबसे पहले Hindi Dictation Khand 1 PDF को पूरा कर लें।

उच्च गति अभ्यास खंड – 2

महोदय, जो एक के बाद एक आते हैं, शारीरिक आवश्यकताएँ, यथा भोजन, कपड़ा, मकान और आराम जीवन की मौलिक आवश्यकताए हैं। दूसरे स्तर पर आती हैं सुरक्षा और भविष्य के प्रति निशिचिंतता। इनके लिए मनुष्य भाँति-भाँति की वस्तुओं का संग्रह करता है। फिर हैं सामाजिक आवश्यकताएँ, जैसे अपने परिवार के भीतर और फिर बाहर के दूसरे लोगों से अच्छे संबंध बनाए रखने के लिए सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और मनोर॑जनात्मक संगठन बनाना। चौथे स्तर पर हैं अहम्‌ संबंधी आवश्यकताएँ, जैसे आत्म-सम्मान, आत्म-विश्वास, और आत्म-तुष्टि आदि। आत्म-परितोष अर्थात्‌ उन्नति, विकास और ख्याति-प्राप्ति की क्षमताओं को साकार करना व्यक्ति की अंतिम और उच्चतम अपेक्षाएँ हैं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मनुष्य अपने आसपास उपलब्ध पर्यावरण का दोहन करता है। जल-थल-वायु ही नहीं पेड़-पौधों, पशु-पक्षी, जीव-जंतुओं तक का उपयोग करता है। सभी शक्तियों का, यहाँ तक कि सबल व्यक्ति अपने से निर्बल व्यक्तियों तक का दोहन करता है, जो शोषण की सीमा तक पहुँच जाता है। इसके लिए भाँति-भाँति की तकनीकें खोजी और अपनाई जाती हैं।

प्रौद्योगिकी ने मनुष्य को भाँति-भाँति की आवश्यकता की वस्तुएँ अभूतपूर्व प्रचुरता से देकर संतुष्ट किया है और आवश्यकता की सीमा-रेखा भी खिसकाई है। विलासिता और सजावट की ऐसी सामग्री भी दी है जो अब बहुत-कुछ आवश्यकताओं में गिनी जाने लगी है। स्वचल वाहन, दूरदर्शन, धुलाई मशीन, सफाई मशान, सिलाई मशीन, स्टोव-चूल्हे , मिक्सी, फ्रिज आदिं- आदि अब बहुत-से लोगों के लिए अनिवार्य आवश्यकता की कोटि में आ गई हैं। तकनीकी और औद्योगिकी से यह सब संभव हुआ है। किंतु एक ऐसा अल्प-वर्ग भी है जिसके लिए विलासिता आवश्यकता की कोटि में आ चुकी है। विज्ञान की जन-समुदाय के लिए तो मौलिक न्यूनतम आवश्यकताएँ भी विलासिता ही बनी हुई हैं। औद्योगीकरण के सहारे मनुष्य ने जितना भी विकास किया है, उसे वह उन्नति कहकर संतोष करने लगता है और अपनी द्वैध प्रकृति के कारण यह ध्यान नहीं देता कि इस विकास से वर्गभेद पनपा है, अमीरी-गरीबी के बीच की खाई चौड़ी हुई है। जो व्यक्ति मानव-मानव की समानता, समाजवाद या साम्यवाद के गीत गाता है, वही अपनी द्वैध प्रकृति के कारण अपने पर्यावरण, यहाँ तक कि मानव के भी, शोषण के नए-नए तरीके खोजता है। यह शोषण बलात्कार की सीमा तक पहुँच गया है। मनुष्य ने अपनी बुद्धि का प्रयोग किया। फलस्वरूप भाँति-भाँति का औद्योगीकरण हुआ, और जल, थल, वायु, सब प्रदूषण के शिकार हो गए। जितना ही अधिक विकास हुआ उतना ही अधिक विनाश हुआ। प्राकृतिक संपदा का भीषण ह्वास हुआ। व्यापक वन-बिनाश से भूमि बंजर और मरुस्थल बन गई। एक बड़ा हवाई जहाज एक दिन में जितनी ऑक्सीजन खर्च करता है उतनी आक्सीजन 17,000 हेक्टेयर वन में तैयार होती है, और वन बचे ही कितने हैं। इस उद्योग-प्रधान सभ्यता का केंद्र पूँजी है और धर्म स्वार्थ है। मनुष्य, मनुष्य का शोषण कर रहा है, देश-देश का।

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